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होली, रन्गो का त्योहार, अपने आप मे युनिक,भारत के अलावे दुनिया के शायेद हि किसी दुसरे देश मे मनाया जाता होगा और अगर मनाते भी होगे तो भारत जैसी बात नही होगी इसकी गारन्टी मै लेता हू. हिन्दुस्तान कि सान्स्क्रितिक विविधता का होली से बढिया उदाहरण और क्या हो सकता है. यु तो भारत मे त्योहारो कि कोइ कमी नही है परन्तु होली उन सब मे सबसे युनिक और अजूबा है. वसत पन्चमि से लेकर पूरा फाल्गुन महिना होली के रन्ग मे रग जाने का मौसम है. होली का असली उल्लास तो ग्रामीण इलाको मे देखने को मिलता है जहा बच्चे होली से कइ दिन पहले से ही रग और पिचकारी लेकर चौक-चौराहो पर चुप जाते है और जैसे ही कोइ अजनबी उधर से गुजरता है हमला कर देते है, आजकल तो बच्चे तरह-तरह के पिचकारियो से लैस होते है और लोगो को देखते हि शूरू हो जाते है.
बचपन के वे दिन याद आते है जब हम पिचकारी और बाल्टी लेकर सड्क किनारे वाले पेडो पर चढ जाते थे और पेडो के बीच चुपकर अपने शिकार का इन्तजार करते थे. इस चक्कर मे तो एक बार पेड से गिरते-गिरते बचा मै, एक बार कि बात है हम अपनी टोली के साथ शिकार के इन्त्जार मे बैठे थे कि कोइ आता हुआ दिखा हम सावधान हो गये और वो जैसे हि निचे आया हमने पूरी बाल्टी उडेल दी, परन्तु ये क्या ये तो हमारे मास्टर साहब थे और वे वही पड रूक गये थे, हमारी तो सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी, खैर सर ने हमे निचे बुलाया, दो-चार डाट पिलायी और आइन्दा ऐसा ना करने कि हिदायत देकर चले गये परन्तु हम कौन सा उनकी बात मानने वाले थे, हमने अपना कार्यक्रम जारी रखा.
जैसे-जैसे समय बदला है, होली के मायेने भी बदले है, अब ग्रामिण इलाके मे भी होली कि वो मिठास नही रही, ढोल-्म्रिदन्ग, हार्मोनियम कि जगह आर्केस्ट्रा ने ले ली है जिस पर ऐसे-ऐसे अश्लील गाने बजते है कि क्या कहने. होली को राधा-क्रिष्ण से सिम्बोलाइज किया जाता है, मतलब होली प्रेम का त्योहार है लेकिन आज इस प्रेम कि जगह नफरत और आपसी दुश्मनी ने ले ली है, लोग दुश्मनी निकालने के लिये होली के दिन का इस्तेमाल कर रहे है, हर साल होली के दिन हत्या और मार-पिट कि घट्नाओ मे इजाफा हो रहा है और यही कारण है कि माता-पिता अपने बच्चो को होली खेलने से मना करने से भी नही चुकते. अधिकान्सत लोग होली के दिन होली खेलने कि जगह घर मे रहना पसन्द करते है. दिल्ली जैसे महानगरो मे तो होली कि महत्ता और भी कम हुइ है, ज्यादातर लोग होली को चुट्टी के दिन से ज्यादा नही मानते जिस दिन वे फेसबुक-व्हट्सएप जैसी साइट्स पर होली कि शुभकामनाये देने मे गुजारते है. इन्हे कौन समझाए कि दोस्तो-रिस्तेदारो से पर्सनली मिलकर उनके साथ होली खेलते हुए, बधाइ देने मे जो मजा है वो फेसबुक-व्हट्सेप पर एक फोटो भेजने मे कहा!
महानगरो मे लोग चत पर चढकर नीचे आते-जाते लोगो पर रन्ग डालते है, हा इस का भी अपना मजा है परन्तु ये मजा एकतरफा होता है, आमने-सामने जाकर एक-्दुसरे को रन्ग लगाने मे जो खुशी मिलती है वो इस मे कहा! अब जब होली कि बात हो रही है तो भाभी और साली कि बात ना हो तो होली अधूरी मानी जायेगी. ग्रमीण इलाके मे लोग घर-घर जाकर भाभियो के साथ होली खेलते है, बिहार मे भाभी को भौजी भी कहा जाता है, तो यकिन मानिये भौजी के साथ होली खेलने मे जो मजा है वो दुनिया मे किसी के साथ होली खेलने मे नही, कसम से! मजा आ जाता है. भौजी के साथ होली खेलने के लिये रणनीति बनायी जाती है, दरअसल भाभी लोग होली के मौसम मे चुपी हुयी रह्ती है तो उन्हे बाहर निकालने के लिये एकनीति बनानी पड्ती है जिसे गुप्त रक्खा जाता है और फिर उस रणनीति के अनुसार धावा बोला जाता है कुलमिलाकर ये सब कमाल का अनुभव होता है.
खैर अन्त मे यहि कहना चाहुन्गा कि सारी दुश्मनी भुलाकर, जम के होली खेलिये और प्रेम के रन्ग उडेलिये और इसि मे मिल जाइए लेकिन केमिकल वाले कलर से बचिए. दुसरो कि सुविधा-असुविधा को ध्यान मे रखते हुए पुनः अपने देश के इस लाजवाब त्योहार को पुरे उल्लास के साथ मनाए और देश कि एकता, अखाण्ड्ता भाइचारा और भाभीचारा 😉 बनाए रक्खे और प्रेम का पैगाम सारी दुनिया मे पहुचाए. धन्यवाद!! Happy Holi In Advance!!!
अजय अनुरागी
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