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भारत मे अनुसन्धान का भविष्य

Anuragee's
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हिन्दुस्तान के इतिहास हजारो साल पुराना है, इन हजारो साल मे बहुत कु्च ऐसा है जिसका जिक्र किया जा सकता है परन्तु science and technology के मामले मे हमने अब तक क्या किया है? अगर हम भारत के पुरे इतिहास को खन्गाले तो जीरो के अविष्कार, रामानुजन, जगदिश चन्द्र बोस जैसे दो-चार नाम हमारे जेहन मे उतरते है या वर्तमान को देखे तो ए पी जे अब्दुल कलाम जैसे एक-दो scientists ही है जो एक स्टैटस रखते है भारत मे. आखिर ऐसा क्यु है कि एक अरब से ज्यादा कि आबादी वाले देश मे scientists कि सन्ख्या इतनी कम है कि अन्ग्रेजी के हर अल्फाबेट के लिये एक नाम भी नही खोज सकते है हम जिन्होने साइन्स मे कुच कालजयी काम किया हो. हमारे लिये इससे ज्यादा शर्म कि बात क्या होगी कि हमे अपने देश का वैज्यनिक इतिहास बताने के लिये भी वेद-पुरान, रामायण-्महाभारत जैसे पुस्तको कि सहायता लेनी परती है जिस की सच्चाइ पर बच्चे भी विश्वास नहि करते है आजकल, उस विषय पर हमारे देश के काबिल कहे जाने वाले लोग तथा खुद प्रधात्मन्त्रि तर्क दे रहे है, हाल हि मे श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि टेस्ट-ट्युब बेबी तथा प्लास्टीक सर्जरी हमारे देश मे हजारो साल पह्ले होते थे तथा भगवान गणेश का हाथी वाला चेहरा प्लास्टीक सर्जरी का हि परिणाम था, इससे ज्यादा हस्यस्पद बात क्या हो सकती है, जिस देश का प्रधान्मन्त्री ऐसी मिथोलजिकल बातो पर तर्क देकर गर्व कर रहा हो उस देश का वैज्यानिक भविष्य कितना उज्जवल होगा ये आप सोच सकते है. क्या हमारा देश साइन्स के मामले मे इतना निर्धन हो गया है कि हमे अपने देश के scientific इतिहास पर गर्व करने के लिये मिथका का सहारा लेना पडे, क्या देश मे एक भी ऐसे scientist नही है जिस पर हम गर्व कर सके??
दरअसल सच्चायी यह है कि कुच गिने-चुने लोगो के अलावे हमारे पास कोइ scientific विरासत है हि नही और जो है उनका जिक्र हम इतनी बार कर चुके है कि ये नाम रट गये है जबान पर, जहा भी हम तर्क मे हारने लगते है वहा ये कह देते है कि भइ दुनिया को शुन्य हमने दिया…. और हो गया पुरा हमारा काम, दुसरे देश इसि शुन्य का इस्तेमाल कर के जीरो से दश और हजार हो गये लेकिन हमे गर्व करने से फुरसत न मिली और हम जीरो के जीरो हि रह गये जबकि कुच करने कि एबिलिटि हम मे भी उतनी हि है जितनी किसी दुसरे देश मे लेकिन हम बस आपस मे लडते रहे कभी धर्म तो कभी जाति के नाम पर, और जब भी हमारे देश कि गरीबी कि बात आती है तो हम इसका ठिकरा अन्ग्रेजो तथा मुगलो पर फोड्ते है जबकी हम सभी जानते है कि अगर विदेशी भारत पर हमेशा हुकुमत करते रहे है तो इस मे गलती भी हमारी हि थी, हमारी गलतियो का फायेदा उठकर हि इतने साल हम पर शासन करते रहे और हिन्दुश्तान को लूटते रहे और जहा तक लूटने कि बात है तो उन से ज्यादा तो हमे अपनो ने लूटा है, वे तो कम-्से-कम कुच देकर गयी लेकिन अपने देश वाले तो आज भी लूट रहे है और इसका उदाहरण ब्लैकमनी और किस्म किस्म का घोटाला है….
बात हो रही थी बेसिक रिसर्च कि तो मेरा मनना है कि बेसिक रिसर्च के लिये जितने अवसर अपने देश मे है शायेद हि किसी दुसरे देश मे इतना ज्यादा अवसर हो, इसका सिधा-सादा लोजिक है कि हिन्दुश्तान science के मामले मे एक गरीब देश है, जहा बहुत कम खोज और रेसर्च हुए है… एक कहावत है कि जहा पेड नही होते वहा पेड उगाने कि सम्भावना सबसे ज्यादा होती है. चुकि भारत मे बहुत कम रिसर्च हुए है सो यहा रिसर्च के लिए पुरा मैदान खाली है बस जरूरत है तो पहल करने कि उसके बाद देश मे रिसर्च कि ऐसी फसल लह्लहायेगी जो आज हम सोच भी नही सकते.
दुनिया के सबसे युवा देश है हम फिर भी हमे दुसरे देशो पर निर्भर रहना पड्ता है, हमारे अन्दर पोटेन्सियल है बस जरूरत है सही दिशा-निर्देश और इच्चाशक्ती कि जो तभी सम्भव है जब हमारे देश के राजनेता घटिया राजनिती को भूलकर एक साथ एक दिशा मे कदम बढाये. हमारा देश लगभग ३५ बोलियन रुपये रिसर्च पर खर्च करता है जो अमेरिका, चीन और जापान जैसे देश के मुकाबले मे कुच भी नही है. हमारे देश के बजट का अधिकान्श हिस्सा security मे जाता है, जहा हजारो लोगो को दो वक्त की रोटी नसीब नही होती जहा लोग असन्तुलित आहार से मर रहे है वो देश अपने बजट का सब से ज्यादा हिस्सा अग्नि मिसाइल और मन्गल्यान बनाने मे खर्च कर रहा है तो देश का बेडा गर्क तो होगा ही, प्रिथ्वी पर दो वक्त का भोजन नसीब नही हो रहा है और लोग मन्गल ग्रह पर सैर करने के सपने दिखा रहे है ये किस तरह का डेवलप्मेन्ट है मेरी समझ से पडे है.
आज हमारे देश को बुनियादी चिजो कि ज्यदा जरूरत है और इसके लिये सरकार और जनता दोनो को मिलकर काम करना पडेगा. अपनी नयी पिढी को अन्धी नकल करने कि जगह शक करना सिखाना होगा तथा नयी खोज और रिसर्च के लिये प्रेरित करना पडेगा तब जाकर सही मायने मे साइन्स का विकास होगा और तभी मन्गल्यान और अग्नि मिसाइल जैसी खोज हमे वास्त्विक खुशी देगी.
अजय अनुरागी

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